हद पार बेहद है, बेहद पार अक्षर,
अक्षर पार अक्षरातीत, जागिये इन घर ॥
Beyond this perishable, timed and limited world exists indestructible, eternal and infinite, abode of Akshar Brahma. Beyond Akshar is Aksharatit, Wake up souls in this home.
हम ब्रह्मसृष्ठ आई धाम से,अक्षर खेल देखन ।
खेल देख के जागिए, घर असलू अपने तन ॥
हम सभी ब्रह्मात्माएँ खेल देखने के लिए परमधाम से इस जगतमें आई हैं, अब इस खेलको देखकर जागृत हो जाइए, अपने मूल स्वरूप परमात्मा तो परमधाम में ही है॥
We the celestial souls have come to see this world which is full of misery, ignorance,amnesia of self knowledge. Haven't we seen enough! Time has come to realise that we are the part of satchidanand (Truth, eternal conciousness and bliss) and our abode is paramdham.
इन ठौर ए मिलावा, जिन जुदा जाने आप ।
इतहीं तेरी कयामत, याही ठौर मिलाप।।२१
जब ब्रह्मात्माएँ स्वयंको एक दूसरेसे भिन्न नहीं समझेंगी उस समय उसी स्थानको मूल मिलावा समझना चाहिए. इसलिए हे आत्मा ! यहीं पर तेरी जागृति होगी और तू मूलमिलावाकी बैठकका अनुभव कर सकेगी.
In this very place you can unite and experience the mool milava(original meeting place) when all the separation you know ceases. When the self gets awakened and gain the unity consciousness then think you have reached the mool milava (original meeting place). This which is your kayamat(awakening of the soul from this body) and you will experience the union just over here.
prakaran 33 Shri parikrama
पार ना कहूं अरस का, सो कह्या बीच दिल मोमिन ।
ए बिचार कर देखिए बका, सो ल्याए बीच दिल इन ।।४
परमधामका कोई पारावार ही नहीं है किन्तु उसे ब्रह्मात्माओंके हृदयके अन्दर कहा गया है. जरा विचारपूर्वक देखो, ब्रह्मात्माओंके हृदयके अन्दर ही अखण्ड परमधामको अङ्कित कर दिया है.
The is no limit to Paramdham but which is within the heart of the celestial souls(Brahm atma, momin, chosen souls). Ponder over this about eternal abode which is brought by these souls in whose heart is called the Paramdham.
prakaran 34 Shri parikrama
होत नूर थें दूजा बोलते, दूजा नूर बिना कछू नाहिं ।
एक वाहेदत नूर है, सब हक नूर के माहिं ।।३०
परमधाममें प्रकाशके अतिरिक्त यदि कुछ होता तो उसके विषयमें कुछ कहा जा सकता. किन्तु वहाँ इसके अतिरिक्त कुछ है ही नहीं, मात्र प्रकाशका ही अद्वैत स्वरूप है. इस प्रकार परमधामकी यावत् सामग्री श्रीराजजीके प्रकाशसे ओत-प्रोत हैं.
In Paramdham there is nothing other than Supreme(Brahm)'s light. The unity consciousness is the light and everything including the Supreme is one with it.
नूर कहे महामत रूहें, देखो नजरों नूर इलम ।
वाहेदत आप नूर होए के, पकडो नूर जमाल कदम ।।३१
महामति कहते हैं, हे ब्रह्मात्माओ ! धामधनीके प्रकाशस्वरूप इस तारतम ज्ञाानको देखो एवं स्वयं भी तेजोमय अद्वैत स्वरूपमें जागृत होकर धामधनीके चरण कमलोंको हृदयमें धारण करो.
Mahamati (Greater Intelligence) say O souls, See the sight by the divine light of wisdom (tartamgyaan) and awakening in the unity consciousness thus becoming the light yourself, hold tightly the feet of Aksharateet Lord (Noor Jamal).
प्रकरण ३५ Shri parikrama
जिमी चेतन बन चेतन, पसु पंखी सुध बुध।
थिर चर सबे चेतन, याकी सोभा है कै विध ।।३०
परमधामकी दिव्य भूमि तथा वन आदि सभी चेतनमय हैं. यहाँके पशुपक्षीकी सुधि तथा बुद्धि भी विलक्षण है. यहाँके चल-अचल सभी चैतन्य हैं. इनकी विविध शोभाका वर्णन नहीं हो सकता है.
The ground is full of consciousness so is the forest and the birds and animals have complete consciousness and the intelligence both. All the inanimate objects are also full of consciousness, there are various types of splendour.
तो कह्या थावर चेतन, अपनी अपनी मिसल।
ए अंतर आंखें खुले पाइए, पर आतम सुख नेहेचल ।।३१
परमधामके सभी स्थावर पदार्थ भी चैतन्य कहलाते हैं. अपने-अपने समूहमें ये सभी चेतन हैं. किन्तु अन्तर्दृष्टि खुलने पर ही पर -आत्माके अखण्ड आनन्दका अनुभव किया जा सकता है.
In Paramdham animate and inanimate all that exist is conscious (can feel) of their own kind. If one can see when one's inward eye (eye of the soul ) is opened and then one can understand the what eternal bliss the original soul in Paramdham experience.
प्रकरण ३८ shri parikrama
Mahamati Prannathji
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